शनिवार, 25 जून 2011

प्यारा मौसम बरसात और गन्दगी

प्यारा मौसम बरसात और गन्दगी  

उमड़ -घमड कर कारे-कारे बादल जब आकाश पर छातें हैं 
दिल में प्यार के मीठे-मीठे अरमाँ जगा जातें   हैं 
ठंडी -ठंडी हवाएं छूती हुई तन को सिहरा जातीं हैं 
मन को नए-नए एहसासों से भर देती है 
रिमझिम फुआरें जब पढने लगतीं हैं 
तन-मन को भीगने से रोक नहीं पातीं हैं

चारों तरफ भीगा-भीगा सा नजर आने लगता है 
प्यार भरे गीत,मेघ मल्हार गाने का मन करने लगता है 
पेड़ -पोधे भी गर्मी से राहत पा झुमने लगते हैं
पंछी भी आसमां में चहचहाने लगतें हैं 
किसानों के सूखे चेहरों पर मुस्कान छा जाती है 
खेत खलिआनो में बहार सी आ जाती है 
पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा नहाया सा लगने लगता है 
हर तरफ साफ़-साफ़ धुला-धुला सा दिखने लगता है,
पर हमारे देश की सडकों की हालत हो जाती है खस्ता 
हर तरफ कीचड और पानी हो जाता है इकठ्ठा 
आवागमन में परेशानी होने लगती है 
मखियों -मछ्छरों की तादाद बदने लगती हैं 
बीमारीओं का हमला हर घर में होने लगता है 
इतने अच्छे मौसम का मजा खोने लगता है 
काश हम लोग भी सफाई का महत्त्व समझने लगें 
सड़कों और drainage system का निर्माण ठीक से होने लगे 
कचरे और गंदगियों के ढेर से छुटकारा मिले 
तो ये बरसात का मौसम और सुहाना लगने लगे
घूमने और भीगने का मजा और आने लगे 
साफ़ सुथरा हमारा देश कितना अच्छा लगेगा 
फिर कोई हमें dirty indians नहीं कहेगा /
चाय और पकोड़े को स्वाद बदने लगेगा / 
.
    

खाइए बारिशों का मौसम है   

रविवार, 19 जून 2011

विवाह और तलाक

विवाह और तलाक  

विवाह जिसने ये रस्म बनाई ,वाह क्या खूब बनाई
दो नितांत अजनबी एक अनूठे बंधन में बंध जाते हैं 
जीवन भर के लिए एक -दूसरे के हो जाते हैं 
 वह"मैं"नहीं "हम" हो जातें हैं ,दो जिस्म एक  जान बन जाते हैं 
सारे रिश्तों से बढ़कर हो जाता है ये रिश्ता प्यारा 
उनकी नजर में उनका घर  होता है जहाँ से न्यारा  
हर सुख-दुःख ,परेशानियों में एक दुसरे का साथ निभाने का वचन लेतें हैं
कभी साथ ना छोड़ने का वायदा करतें हैं
शुरू शुरू में रहन सहन ,विचारों ,इच्छाओं  में हो जातें हैं  मतभेद
पर प्यार,विश्वास ,सहनशीलता ,समझदारी मिटा देतें है सब भेद    
अहम् को छोडकर ,कमियों  को भूलकर , बुराइयों को छोडकर
एक दूसरे की अच्छाइयों को देखिये और दिल से अपनाईये
आजकल लोग जोड़ने में नहीं तोड़ने में विश्वास  करने लगें हैं
इसीलिए विवाह जैसा प्यारा बंधन तलाक में तब्दील होने लगे  है.
अहम् ,शक ,चारित्रिक खामियों,लालच  के कारण परिवार बिखर रहें हैं
      बच्चों की जिंदगियों पर ऐसे रिश्ते बहुत असर कर रहें हैं
बड़े ही जब समझदारी नहीं दिखायेंगे ,तो अपने बच्चों को क्या सिखायेंगे
एक बंधन तोडकर ,दुसरा बंधन जोड़ना किसी को भी आसान नहीं होता है
बच्चों को भी अकले माँ या अकेले पिता द्वारा पालना मुश्किलें खड़ी करता है 
पहला प्यार ,पहली शादी की बात ही अलग होती है
दूसरे बंधन में समझोता ज्यादा  भावनाएं कम होतीं है
समाज भी ऐसे बच्चों को अलग नज़रों से देखने लगता है
इसीलिए बच्चा भी शर्म,झिझक से समाज से कटने लगता है
विवाह जैसी प्यारी रस्म से उसका विश्वास उठने लगता है
और वो समाज से बदला लेने के लिए बिगड़ने लगता है
इसीलिए बच्चों में हिंसात्मक प्रवृति बढ़ रही है
हमारी संस्कृति और परम्पराओं से उनकी धारणाएं बदल रहीं हैं
अपनी सोच और नजरिये में बदलाव लाइए
विवाह जैसी अच्छी रस्म का मजाक मत बनाईए
डिवोर्स या तलाक जैसी रस्म बहुत मजबूरी में ही अपनाइए
तभी हमारे देश का भविष्य हमारी परम्पराओं को निभाएगा
नहीं तो वह पश्चिमी सभ्यता को अपना रहा है,उन्ही के संस्कारों में ढल जाएगा
अपने रस्मों रिवाजों को  दिल से निभाने की कसम खाइए
और देश का भविष्य उज्जवल बनाईए.
 

भारत माँ तुझे सलाम 



गुरुवार, 9 जून 2011

सरकारी या प्राइवेट



                                                   सरकारी या प्राइवेट  






आज एक महीने से हमारे देश में भ्रस्टाचार  के बारे में एकदम जागरूकता आ गई है,/श्री अन्ना हजारेजी ने ये मुद्दा उठाया अनशन किया /फिर बाबा रामदेवजी आये उन्होंने इस मुद्दे पर रामलीला मैदान में बहुत बड़े पैमाने पर

 सत्याग्रह किया परन्तु सरकार ने बलपूर्वक इस सत्याग्रह और अनशन को समाप्त कर दिया /अरे भाई भ्रस्टाचार कोई bird flu या swine flu जैसी बीमारी थोड़ी है की आई और चली गई या vaccine लगाने से थम गई /ये तो हमारे देश वासिओं के रग-रग में समाई हुई महाबिमारी है जो दीमक की तरह हमारे देश को अंदर ही अंदर खोखला कर रही है देश का पैसा कालेधन के रूप में अरबों -खरबों में बाहर के देश में जमा है/जिसका हमारे देश में कितना सदुपयोग हो सकता  है /लेकिन सोचने वाली बात ये है  की हम उनसे ही उसे वापस लाने के लिए मांग कर रहे हैं जिनका उसे वहां जमा करने में बहुत बड़ा हाँथ है /क्या वो ऐसा होने देंगे /
असल बात ये है की हमारे देश में है "प्रजा-तंत्र"इसी लिए नहीं बचा अब कोई "तंत्र"/सरकार के नाम पर सरकारी संस्थाओं द्वारा जो भी काम हो रहे हैं उसमे papers पर कुछ दिखाया जाता है और होता कुछ और है /क्योंकि सबका हिस्सा बंटा हुआ है नीचे से ऊपर तक/लाखों-करोड़ों रूपए सरकार की तरफ से  काम के लिए दिए जाते है/काम तो होता है परन्तु उसमे सस्ता materials use करके काम पूरा करने की खाना-पूरी होती है /बाकी पैसा लोगों की जेबें  भरता है./सरकारी विभाग सिर्फ भ्रष्टाचार को बढावा दे रहें हैं सरकार का कोई भी विभाग हो वहां कामचोरी,मक्कारी,का बोलबाला है /विशेषकर तृतीय और चतुर्थ label के कर्मचारी ,जो आठ घंटे की नोकरी मैं मुस्किल से ४ या ५ घंटे काम करते हैं /सरकार की तरफ से मिलनेवाली  छुट्टियों को तो लेते ही हैं झूठें मेडिकल certificate  बनवाकर महीने मैं आधे दिन office से गायब रहतें हैं /किसी भी सरकारी कार्यालय मैं ५०%कर्मचारियों की उपस्थति रहती है /अगर कोई अफसर कुछ बोलता है तो इनकी union उनका साथ देने के लिए उस अफसर के खिलाफ नारे -बाजी करने खड़ी हो जातो है / सरकार इनको सुविधाएँ  और salary तो बढा रही है पर इन पर कोई अंकुश नहीं लगा रही है /आज सरकारी अस्पताल ,सरकारी स्कूलों का हाल कोंन नहीं जानता /सरकारी डाक्टर अस्पताल की जगह अपने private क्लिनिक में, सरकारी शिक्षक स्कूलों की जगह घर में tution लेने में ज्यादा ब्यस्त रहतें हैं / private hospitals और public schools में जनता  को उनके मुहमांगी फीस ,donation,और बेवजह की जांचों में मजबूरी में उनकी बात मानते हुए दुगना,तीगना पैसा खर्च करना पड़ता है./परन्तु उसके बाद कम से कम ये satisfaction तो रहता है की उनका इलाज ठीक से ,या उनके बच्चों का भविष्य अच्छा बनेगा /सरकारी विभागों के निक्कमेपन की वजह से ही आज जनता private companies पर ज्यादा विस्वास कर रही है/ आज देश की जो तरक्की हो  रही है वो private companies के कारण/क्योंकि private companies अपने कर्मचारियों को अच्छी salary और सुविधाएँ  तो देतें हैं /परंतू ऑफिस में उनके कर्मचारियों की उपस्थति ९५%रहती है / पूरी मेहनत,लगन  और समय से आकर काम करना होता है /उनके कर्मचारिओं को डर रहता है की ठीक से काम नहीं किया या ज्यादा छुट्टियाँ लीं तो salary तो cut होगी ही नोकरी भी जा सकती है /ये  डर हमारे सरकारी कर्मचारियों को नहीं होता /अफसरों को तो भी promotion,C.R.,और Transfer का डर रहता है परन्तु नीचे के lable पर कोई डर नहीं है /इसीलिए काफी अफसर frustrate होकर सरकारी नोकरी छोडकर प्राइवेट कंपनी join कर रहे हैं /सरकार सरकारी संस्थाओं को बंद करके सारे विभागों का काम private companies को  क्यों  नहीं  सोंप देती /कम से कम काम तो अच्छा होगा ही / सरकारी कर्मचारिओं की salary ना देने से करोंड़ों रुपयों की बचत भी होगी /कामचोरी नहीं होगी और भ्रस्टाचार में भी काफी कमी आएगी /देश की और तरक्की होगी /नेता भी जिन सरकारी विभागों के नाम पर सरकार से  फंड लेते हैं वो लेने की जरुरत भी नहीं पड़ेगी तो भ्रस्टाचार भी नहीं हो पायेगा / 
goverment school

जीवन हुआ दुश्वार ,जनता हुई बेजार 
बंद करो बंद करो ये भ्रष्टाचार  
 

                                                                        
   


गुरुवार, 2 जून 2011

समाज का डर

समाज का डर

समाज का डर हम पर,कुछ इस तरह छाया है 
की कुरीतियों का फैला अंधियारा हमारे जीवन मैं हर तरफ नजर आया है 
शादियों मैं हम कर्जा लेकर  शान-शोकत और दिखावे 
में खूब खर्च करते हैं
फिर जिंदगी भर उसका कर्ज चुकातें हैं
समाज के डर से 
जब ससुराल से रोती-बिलखती बेटी शरीर में जख्मों 
का निशान लिए वापस ना जाने की फरियाद करती हुई 
माता-पिता के पास आती है ,पर वो उसे समझाकर वापस 
ससुराल भेज देतें हैं 
समाज के डर से 
कुछ दिनों बाद उसी बेटी की हत्या या आत्महत्या का
समाचार सुन खूब हो -हल्ला मचाते हैं 
कोर्ट -कचहेरी करतें हैं,पर आई बेटी को नहीं अपनातें हैं  
समाज के डर से 
बाल -विवाह का अंजाम और कानूनी अपराध को 
जानते हुए भी आज भी कई छैत्रों में
बाल -विवाह हो रहें हैं पर इस कुरीति को हम छोड नहीं पा रहे हैं 
समाज के डर से
बिना जांच -पड़ताल किये विदेश के मोह में विदेश में बसे 
लडके से अपनी लड़की की शादी करके धोखा खातें हैं 
फिर समाज से छुपाने के लिए झूठे बहाने बनाते हैं 
समाज के डर से 
बेटी पैदा होने से नाक नीची होती है,.बेटा तो वंश चलाता है 
इस कुरीति से बेटियों की गर्भ में ही ह्त्या कर देते  है 
दहेज़ जैसी कुरीति के कारण भी बेटी को जन्म नहीं देना चाहते हैं         
समाज के डर से 
धर्म के नाम पर कब तक ढोंगी-पाखंडी बाबाओं को 
दान-पुण्य के नाम पर धन लूटातें रहेंगे 
इनकी बातों में आते रहेंगे और अपने को छलते रहेंगे 

समाज के डर से
ऐसी कितनी कुरीतियों को हम निभाते रहेंगे 
और इंसानों की  जिंदगियों से खेलते रहेंगे
समाज से कभी इन कुरीतियों ख़त्म नहीं कर पायेंगे
समाज के डर से 
समाज हमसे है हम समाज से नहीं 
बुराइयों को छोडकर अच्छाइयों को अपनाओं
शिक्षित  समाज में नई रीतियों को बनाओ
पुराने समाज की पुरानी कुरीतियों को भूल जाओ  
समाज के डर से