शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

मेरी प्यारी माँ

आज मेरी माँ के जन्मदिन के शुभअवसर पर ये रचना मैं अपनी माँ को समर्पित कर रहीं हूँ /भगवान् उनको दीर्घायु प्रदान करे / 

मेरी प्यारी माँ 

दुनिया मैं सबसे न्यारी है मेरी माँ 
बहुत सुंदर बहुत प्यारी है मेरी माँ 
भगवान् पर बहुत विस्वास करती है मेरी माँ 
इसीलिए कैसी भी परिस्थिति मैं घबराती नहीं मेरी माँ 
बिलकुल देवी-स्वरूपा है मेरी माँ 
बहुत सुंदर बहुत प्यारी है मेरी माँ 
अपनी दिनचर्या ,अपने मैं ही ब्यस्त रहती है मेरी माँ 
सबमे अच्छाई देखती ,कभी किसी की बुराई नहीं करती मेरी माँ 
हमेशा अच्छी सीख ,अच्छे सस्कार देती है मेरी माँ 
बहुत सुंदर बहुत प्यारी है मेरी माँ 
दिल मैं बहुत प्यार है पर जताती नहीं मेरी माँ 
मन के भावों को शब्दों मैं ब्यक्त नहीं कर पाती मेरी माँ 
इसीलिए गलतफमी की शिकार बन जाती है मेरी माँ 
बहुत सुंदर बहुत प्यारी है मेरी माँ 
हमेशा सजीं संवरी,एक मनमोहक ब्यक्तित्व है मेरी माँ 
अपनी सुंदरता का अभी भी बहुत ख्याल रखती है मेरी माँ 
मेरे लिए तो मेरा आदर्श मेरी दुनिया है मेरी माँ 
बहुत सुंदर बहुत प्यारी है मेरी माँ 
भगवान् हर जनम मैं इन्हें ही बनाए मेरी माँ 
इतनी दीर्घायु दे की कभी ना बिछड़े मुझसे मेरी माँ 
हमेशा आशीर्वाद और प्यार से गले लगाती रहे मेरी माँ 
बहुत सुंदर बहुत प्यारी है मेरी माँ 
 
  

बुधवार, 27 अप्रैल 2011

जीवन चक्र






जीवन चक्र 

जीवन निरंतर गति से अपने पथ पर है अग्रसर 
उसके अन्दर है हमारी खट्टी मीठी यादों का समुन्दर 
समुंदर की लहरों का आवागमन है चलायेमान 
हमारे जीवन का उतार-चदाव, सुख-दुःख भी है उसी के सामान
खिलखिलाते निश्चिन्त बचपन की यादें अनमोल 
परिवार के साथ पल-पल गुज़ारे लम्हें बेमोल
वो नवयोवन आने का मधुर-मधुर आभाश
शारीरिक परिवर्तन और जिज्ञासाओं से भरा एह्सास      


                                          सुन्दर-सुन्दर सपनों मैं डूबा मन मदहोश
                                             दुनिया को अपनी मुट्ठी मैं करने का जोश

योवन के आगमन पर एक हमसफ़र का आना 
प्रत्येक सुख-दुःख मैं उसका साथ निभाना 
फिर यह जीवन सिर्फ अपना नहीं विभिन्न रूपों मैं बट जाना
ज़िन्दगी की नयी जिम्मेदारियों को उनकी मंजिल तक पहुंचाना 
जीवन का पहिया निर्वाध रूप से इसी तरह चलते जाना 
यही है हमारे जीवन चक्र का सार 
जिसमे रचा-बसा है हमारे सुख-दुःख का भंडार


   

  

रविवार, 24 अप्रैल 2011

हमारा देश महान

हमारा  देश महान


हमारा देश महान, कहना कितना आसान
चारों तरफ चोरबाजारी ,कालाबाजारी ,भ्रस्टाचारी है पनप रही 
मिलावटी वस्तुओं की बिक्री आराम से हो रही 
इंसान की जिन्दगी से खेलना 
यहाँ कितना आसान 
फिर भी हमारा देश महान 
औरतों को देवी कहते हैं 
पर उसकी इज्जत सरेआम उछाल देतेहैं
बच्चियां ,लडकियां,औरतें घर मैं तक सुरक्षित नहीं जहां
अत्याचार करना,तेज़ाब फेकना,नहीं तो गोली मार देना 
यहाँ कितना आसान 
फिर भी हमारा देश महान 
महंगाई इतनी बढ़ रही 
गरीबों को दाल-रोटी भी खाना मुश्किल पड़ रही 
किसान कर रहे आत्महत्या जहां 
किसी की भी नहीं सुनवाई यहाँ 
जुर्म करनेवाले नेताओं को शान से रहना 
यहाँ कितना आसान 
फिर भी हमारा देश महान 
जो सोच रहें हैं सिर्फ अपनी भलाई 
        देश की सब तरफ से हो रही तबाही
गुंडों,चोरों का साम्राज्य जहां 
नेताओं के लिए नहीं कोई कानून यहाँ 
उनके लिए कोई भी कानून तोड़ना 
यहाँ कितना आसान 
फिर भी हमारा देश महान 
        
 

रविवार, 17 अप्रैल 2011

दर्पण

आज-कल  मेरा अक्श  दर्पण में  धुंधला 
नजर आता है 
दर्पण में  खराबी है या  मेरी नज़रों में 
समझ नहीं  आता  है 
बार-बार दर्पण को साफ़ कराती हूँ 
अपना चेहरा भी पानी से धोती हूँ 
पर जब भी दर्पण में देखूँ 
अपने अक्श को धुंधला  ही  पाऊँ 
एक दिन एक बच्चे को उसी दर्पण 
के सामने खड़ा पाया 
तो उसका अक्श दर्पण में 
साफ़ नजर  आया 
ना तो ये नज़रों की खराबी है 
ना दर्पण की 
ये खराबी  तो है हमारे 
अंतर्मन  की 
इतने सालों में  जो छल,कपट ,अहम् जैसी बुराइयां 
हमारे अंतर्मन में  छाती  जाती हैं 
वह अब हमारे अंतर्मन के साथ -साथ 
हमारे अस्तित्व में भी नजर आती हैं 
दर्पण तो बिलकुल स्वच्छ है 
हमारा अस्तित्व ही धुंधला गया है 
हम अपना अंतर्मन स्वच्छ कर लें
तो हमारा अस्तित्व भी साफ़ नजर आयेगा 
फिर कभी वो धुंधला नजर नहीं आयेगा   

धूप- छावं


धूप अधिक ,छावं कम है जिंदगी
जिम्मदारियों को मंजिलों तक 
                                    पहुंचाने की चाह है जिंदगी 
रात -दिन मेहनत करके ,आधी से ज्यादा 
                                  धूप में  निकल जाती है जिंदगी 
इसी आशा में की जिम्मेदारियों से मुक्त होने पर 
                        ठंडी-ठंडी छावं में गुजर जायेगी जिंदगी 
पर जब जिम्मेदारियां मंजिल पाकर मुक्त होकर
                              हवा हो जातीं हैं 
तो दुःख से ठंडी-ठंडी छावं की आशा लिए 
                     दुनिया से विलुप्त हो जाती है जिंदगी    
      
        

बुधवार, 13 अप्रैल 2011

corruption in india







आज हमारे भारत देश में भ्रष्टाचार जिस तरह एक लाइलाज  बीमारी की तरह हर जगह  फैल रही है.उसमे सबसे ज्यादा जिम्मेदार   हमारे देश के नेता जो सबसे ज्यादा जिम्मेदार नागरिक और जिम्मेदार पदों पर आसीन हैं .उन्हें ही जिम्मदार ठराया जाएगा |श्री अन्ना हज्जारेजी ने जिस आन्दोलन की शुरुआत  अभी की है उसे तो बहुत साल पहले ही शुरू हो जाना चाहिये था |  देश के हालत इतने बिगड़ गए हैं की अब सुधार होना नामुमकिन है | सबसे पहले तो हमें इन नेताओं के लिये भी कुछ नियम बंनाने पड़ेंगे |
१.इनके लिए भी अवकाश प्राप्ति की एक उम्र निश्चित करनी पड़ेगी |
२.परिवारवाद ख़त्म करना होगा |
३.इनके लिए भी जिस तरह से सरकारी अधिकारिओं की हर साल गोपनीय रिपोर्ट लिखी जाती है.इसी तरह इनके किया हुए काम का लेखा जोखा रखने के लिया एक कमेटी बंनानी चाहिये |  उसकी रिपोर्ट के आधार पर उसे आगे के काम के लिया निउक्त करना चाहिये |
४.अपनी सम्पति का ब्योरा हर साल इनको देना  चाहिये.|
५.पढाई के लिये भी कम से कम स्नातक तो होना ही चाहिये
६.सहूलियतें उतनी  ही  दें जितनी जरुरत हों.सारे रिश्तेदार पालने की जिम्मेअदारी सरकार की थोड़ी है.
अगर देश के नेता सुधर   गए तो उनके आधीन सरकारी तंत्र अपने आप सुधर जाएगा |
अन्ना हम आपके साथ हैं आप ने बहुत अच्छा   मुद्दा  लेकर आन्दोलन सुरु किया है.भगवान् इन नेताओं को सदबुधि दे |  

                             साथी हाथ बढाना, भारत से भ्रस्टाचार को है मिटाना 
                                   एक अकेला थक जाएगा,मिलकर हाथ बढाना