बुधवार, 25 मई 2011

इंसानियत

इंसानियत

कहाँ से और कैसे आया था यह तो भगवान ही जानता था
पांच-छे साल का एक बच्चा चार-पांच दिन से सिग्नल पर नज़र आया था 
चिलचिलाती धूप में नंगे पैर निक्कर और बनियान पहने सिगनल पर खड़ी होती
 गाड़ी को दौड़कर अपनी शर्ट से साफ़ करता और उसके बाद पैसे लेने के लिए हाथ बढ़ाता 
कुछ नरम दिल इंसान पैसे दे देते, कुछ गुस्से से झिड़क देते 
कुछ बिना कुछ दिए गाड़ी आगे बड़ा देते
वो कुछ देर गाड़ी से उडती हुई धूल को मायूसी से देखता
फिर अगला सिगनल होने पर गाड़ियाँ साफ़ करने दौड़ पड़ता
जब कुछ पैसे इकट्टे हो जाते तो फुटपाथ पे खड़े खाने के ठेले के पास खड़ा हो जाता
ठेले वाला भी खाना मांगने पर उसको झिड़क देता
पहले तो अपने और ग्राहकों को निपटाता
भूखा  बच्चा जब तक खाने को भूखी नज़रों से देखता
सब से आखिर में उस बच्चे से पूछता
पहले वो बच्चे से गिनकर पैसे ले लेता
फिर भी उसे बासी बचा-खुचा खाना पकड़ा देता
भूखा बच्चा वहीँ नीचे बैठकर अपना पेट भरता
वही कोने के नल से पानी पी लेता
और चुप चाप पास ही पेड़ की छाया में लेट जाता
एक रात पता नहीं उस बच्चे ने क्या खाया
उसके पेट में जोर से दर्द उठ आया
वो रोया-चिल्लाया पर किसी को तरस नहीं आया
राहगीर दो मिनिट रुकता,ठिठकता फिर मुसीबत के
 डर से अपनी मंजिल पर बढ जाता
रात में तड़प-तड़प कर वो बच्चा इस दुनिया को अलविदा कर गया
सुबह जब कौओ के झुण्ड और शोर से
इंसानों की नज़र पड़ी
तो उनकी भीड़ भी उसके आस-पास बढ़ी
एक इंसान ने मेहरबानी की, पुलिस को फ़ोन द्वारा इत्तिला कर दी
नगर निगम की लावारिश लाश उठाने वाली गाड़ी आई
और उस बच्चे की लाश को उठा कर ले गयी
सिगनल पर भागते दौड़ते उस बच्चे की
तो कहानी यहीं समाप्त हो गयी
दुनिया तो इस ही तरह चलती रही
पर इंसानियत फिर इस दुनिया को रुसवा कर गयी




  

रविवार, 15 मई 2011

औरत ही औरत की दुश्मन

औरत  ही  औरत  की  दुश्मन 


हमारे समाज मैं यही कहा जाता है की औरत को समाज में बराबरी का दर्जा नहीं दिया जाता उसके ऊपर अत्याचार किये जातें हैं .पुरुष उनको अपने से नीचा समझतें हैं /उनके साथ बदसलूकी करते हैं /तो मेरी बहनों इस सबकी जिम्मेदार हम खुद हैं /जब घर मैं बेटी पैदा होती है तो सबसे ज्यादा दुखी घर की औरतें चाहे वो सास ,ननदें हो पड़ोसनें हो या खुद माँ ही क्यों ना हो दुखी होकर घर में ऐसा दुःख का माहोल कर देतीं है की घर के पुरुषों को लगता है की कोई बहुत बड़ी मुसीबत आ गई / और उसके बाद जो भी आता है वो बधाई देने नहीं आता सहानुभूति दिखाने आता है खासकर औरतें शुरुवात यहीं से हो जाती है /औरतों द्वारा ही औरत के जनम पर अपनी कोम की  बेज्जती करने की /  जिस घर मैं बेटा -बेटी दोनों होतें हैं वहां माँ,दादी ही दोनों के बीच में  भेद-भाव करतीं हैं बेटा चाहे कितनी ही बदमाशी करे उसको नजर अंदाज करेंगी नहीं तो और बढावा ही देंगी /बेटी को अगर मारे -पीटे या सताए  और वो अगर शिकायत करे तो उसको उलटा  डांटा या समझाया जाएगा पर बेटे को कुछ नहीं कहा जाएगा /बेटों की  इस तरह से परवरिश करना की वो कोई बहुत ऊँची चीज हैं और घर मैं माँ ,बहने उनकी गुलाम हैं ,तो ये संस्कार उन्हें हम औरतें ही देतीं है/  शुरुआत यहीं से होती है औरतें यह भूल जातीं है की आज जो उनका बेटा है वो कल बड़े होकर पुरुष बनेगा अगर आप उसको बचपन से ही औरतें ,लड़कियों की इज्जत करना.उनको प्रताड़ित ना करना ,घर के कामों में बेटी के साथ बेटों को भी मदद करने के संस्कार दें तो लड़कों की सोच में लड़कियों के प्रति सम्मान और बराबरी का समझने की शिक्षा मिलेगी जो सारी जिंदगी उनके साथ रहेगी /क्योंकि बच्चों की सबसे पहली गुरु माँ ही होती है /
घर मैं जब बहु आती है तो सास,ननदें ही उसको सताने में और उसके प्रति अपने बेटे,भाई को भड्कानें,उनके सम्बन्ध ख़राब करने में अहम् रोल निभाती हैं यहाँ तक की लालच के मारे उस बहु को जलाने में भी अपना पूरा सहयोग देतीं है /कोई किस्मत की मारी औरत अगर विधवा हो जाए तो हम औरतें ही उसको  कोई ताने देने उसको और दुखी करने में कोई कसर नहीं छोड़ती .वो अगर थोड़े साज सिंगार के साथ रहना चाहे तो सबसे  ज्यादा  परेशानी हम औरतों को ही होने लगती है/उसके चरित्र पर उंगलियाँ उठाकर हम अपने घर के पुरुषों को उसके बारे में बड़ा रस लेकर सुनायेंगे /और अपने कोम की खिल्ली खुद ही  उड़ायेंगे /
कोई बलात्कार की शिकार महिला ,लड़की को हम औरतें ऐसी नजरों से देखतें है की इसमें सारी गलती उसी की हो उससे सहानुभूति की जगह हम औरतें ही उससे घिन करते है बात बेबात उसको इतने ताने देतीं हैं की वो ना चाहे तो भी हमारे ब्यवहार से आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाए /
कहने की बात ये है मेरी बहनों की आप अपनी सोच बदलिए /अपनी जलन की भावनाओं को कम कीजिये /मेरा घर में अधिकार कम ना हो जाए ,इज्जत कम ना हो जाए वो मुझसे आगे ना निकल जाए ऐसी बहुत सी बातों से अपनी सोच बदलिए एक स्वस्थ सोच अपनाइए /आप अपने घर के प्रत्येक सदस्य को एक दुसरे की इज्जत करना, घर में सबका बराबर अधिकार होना, सबको अपना काम खुद करने का नियम बनाना, किसी पर अत्याचार ना , करने की शिक्षा देंगी /तो धीरे -धीरे सारे जहाँ की सोच बदलेगी /हम औरतों को जिंदगी को जन्म देने की बहुत बड़ी ताकत दी है उपर वाले ने हमें उसका पूरा फायदा उठाकर अपने प्रति इस पूरे समाज की सोच को बदलना है ये तभी हो सकता है जब हम सबमे एकता हो /एक दुसरे के प्रति सम्मान की भावना हो ना की दुश्मनी की /फिर देखिये बेटी पैदा होने पर भी लोग उतना ही खुश होंगे जितना बेटा पैदा होने पर /औरत को अपने आप ही बराबर का दरजा इस समाज में मिल जाएगा / सोच बदलिए समाज में फेली हुई कुरीतियों  को मिटाइए    
और एक स्वस्थ समाज वाले समाज की रचना कीजिये /

गुरुवार, 12 मई 2011

दुनिया की रीत

दुनिया की  रीत
1

दुनिया की रीत ही निराली है 
किसी को फूलों का हार ,किसी को देती गाली है 
अमीरों को झूक कर सलाम करती है 
भूंखे  गरीब बच्चे की तरबूज चोरी पर जान ले लेती है 
स्वार्थी ,मतलब से परिपूर्ण दुनिया हो रही है 
दुःख-दर्द ,भावनाओं से विहीन,पैसों की गुलाम हो रही है 
गरीबों की कहीं नहीं सुनवाई  ,अमीरों की बेवजह वाहवाही 
गरीब जब सब तरफ से परेशान हो जातें हैं 
तो विद्रोह पर उतर आते हैं

चोरी,डकेती करने,गुंडे,मवाली बनने
 के लिए मजबूर हो जातें हैं
धर्म के नाम पर धर्म के ठेकेदार ,देश के नाम पर देश के कर्णधार 
जब जनता और देश को लूट सकतें हैं 
तो चोरी,डकेती करने पर सिर्फ गरीबों ही को क्यों
सजा देते हैं 
यह दोहरी रीति समझ नहीं आती 
इंसानों में यह भेद की निराली नीति क्यों है निभाई जाती 
गरीबों के जीवन में होतीं खुशियाँ कम हैं 
जमाने द्वारा दिए उनको बहुत से गम हैं 
पैसे को भगवान् मत बनाओ ,इंसानियत को अपनाओ 
मतलब,अहम् ,स्वार्थ को भूलकर ,इंसान को गले लगाओ 
अमीरी,गरीबी किस्मत की बात है ,उसको देखने की एक ही नजर लाओ 
सबके लिए एक ही नियम  कानून हो ,हेंसियत के अनुसार अलग-२ कानून मत बनाओ 
गरीब है तो वो भी इंसान है 
भूंख उसे भी लगती है, दर्द उसे भी होता है 
उसकी मजबूरी और लाचारी का फयदा मत उठाओ 
उसकी भी इज्जत है .उसको दुत्कार कर अपने को 
उसकी नजरों में छोटा मत बनाओ 
इंसान को उसकी हेंसियत से नहीं 
उसके कर्मों से अपनाओ 
सारे भेदभाव को मिटाकर 
इस जहाँ को और सुंदर बनाओ         

शनिवार, 7 मई 2011


आज मदर्स डे पर मैं एक महान ,गरिमामय माँ  मदर टेरेसा को अपनी स्वरचित कविता के द्वारा श्रद्धांजलि  अर्पित कर रही हूँ 

     
ममतामयी माँ मदर टेरेसा 
ममतामयी,गरिमामयी  माँ का रूप थीं वो
सफेद साड़ी मैं लिपटी उजली सुबह -२ की धूप थीं वों 
स्नेहिल मुस्कान मुख पर लिए शांति की दूत थीं वो 
सर्वत्र प्यार का प्रसार करने वाली भगवान् की मूरत थीं वो 
निसहाय इंसानों, अनाथ बच्चों  की आश्रयदाता थीं वो 
किसी सत्ता,ऊँचे पदों, और लालच की ना मोहताज थीं वो 
इस दुनिया में इंसानियत की मिसाल थीं वो 
सही मायने में एक महान इंसान थीं वो 
हमारे धन्य-भाग्य  की भारत में बस गईं थीं वो 
भारत में रहने वाली अनमोल "भारत -रत्न" थीं वो 
भारत की ही नहीं सारी दुनिया की मदर थीं वो 
धरती माँ के समान सहनशील माँ मदर टेरेसा थीं वो 
ऐसी माँ को शत-शत नमन करती हूँ मैं 
उनकी महान आत्मा के लिए हर पल दुआ करती हूँ मैं

HAPPY MOTHER'S DAY

गुरुवार, 5 मई 2011

पीढ़ियों का अंतराल




पीढ़ियों  का अंतराल 

आजकल युवा पीढ़ी परयह इल्जाम लगाए जाते हैं की आजकल के युवा बुजुर्गों का आदर नहीं करते उनकी देखभाल नहीं करते उनको समय नहीं देते /
यह एक सोचने वाली बात है /पुरानी पीढ़ी और एक नई पीढ़ी का अंतराल तो है /परन्तु क्या पुरानी पीढ़ी नए जमाने के साथ अपनी सोच ,अपनी आदतें अपना सहयोग कायम रखतीं हैं/हमारे जमाने का गुणगान करने की जगह नए जमाने में हो रहे बदलाव ,को अपनाएँ अपने बच्चों को आजकल के प्रतियोगी ,भाग-दौड़           वाली जिंदगी में कदम से कदम मिला कर चलने में  सहयोग करें/जो काम वो घर में रहकर आराम से कर सकतें हैं उसको करने में संकोच ना करें और ना ही अपना अहम् बीच में लायें /तो उनका समय भी अच्छे से बीतेगा और उनका मान अपने आप बढेगा /आजकल जिस तरह महंगाई दिन पर दिन बढ़ रही है उसमें एक ब्यक्ति की तनख्वा से ग्रहस्थी  चलाना नामुमकिन है तो पति-पत्नी  दोनों को ही बाहर काम करके अपनी ग्रहस्थी  चलाने की जिम्मेदारी उठानी पढती है /पहले नारी को केवल घर के कार्य ही करने होते थे /बाहर के कार्यों से उनको कोई मतलब नहीं होता था /ज्यादा पढ़ी-लिखी भी नहीं होतीं थीं और कुछ उस जमाने का माहौल भी ऐसा था की बैंक के काम बच्चों के स्कूल की फीस वग्हेरा का काम पुरुष ही करते थे /परन्तु आजकल नारी दोहरा  कार्य कर रही है/ग्रहस्थी   के कार्य तो कर ही रही है ,पैसे भी कमा रही है और बैंक,स्कूल बाहर के कार्यों की भी जिम्मेदारी  उठा रही है /उसके बाद घर में उससे यह अपेक्षा  रखना तुम्हारे ज़माने  जैसे ही घर के काम करे तुम्हारी पूरी सेवा करे /तुम जैसे चाहो वैसा ही पहने ओढ़े तो क्या यह संभव है /जो बुजुर्ग इन सब बातों को समझतें हैं /अपने विचारों में परिवर्तन ले आतें है समयानुसार नई पीढ़ी के साथ उनकी समस्या को अपने अनुभव के ज्ञान से सुलझाने में मदद करतें हैं / घर के छोटे -छोटे कामों में हाथ बंटाते हैं बेकार की नुक्ताचीनी नहीं करते /बच्चों की मजबूरी और परेशानियों को समझते हैं वो बुजुर्ग घर में पूरा सम्मान पातें हैं ,और कदम-कदम पर घर के प्रत्येक सदस्य की जरुरत बन जातें हैं /आजकल एकल परिवार वाले युग में और ऐसे माहौल में जहाँ इंसान का इंसान पर भी विश्वास करना मुश्किल हो रहा है /बुजुर्गों का साथ में रहने से बच्चों की सुरक्षा ,घर की सुरक्षा की चिन्ता से मुक्त होकर आराम से पति-पत्नी अपने कार्यों पर जा सकते हैं /आज की पीढ़ी को भी ऐसे बुजुर्गों की पूरी इज्जत करना .उनकी स्वास्थ सम्बन्धी देखभालकरना .उनकी जरूरतों का पूरा ध्यान रखना चाहिए /
अथार्त अगर नए जमाने के साथ ,उसके बदलाव को स्वीकार करते हुए नई पीढ़ी की मजबूरियों को समझते हुए सहयोग करे और नयी पीढ़ी भी पुरानी पीढ़ी को मान सम्मान के साथ उनके अनुभव का लाभ उठाते हुए उनके स्वास्थ का ध्यान रखते हुए अपने कर्तव्यों का ध्यान रखे.तो ये पीदियों में होने वाले विचारों का अंतराल ख़त्म हो जाए /और दोनों पीदियाँ एक दूसरे के बिना रहनें की सोचें भी ना./दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और साथ में रहने से सुरक्षित भी./
साथ में रहने का सुख उठाओ ,एक दूसरे को दिल से अपनाओ 
छोटी-छोटी बातों और अहम्  को भूलकर ,हंसी-खुशी जिंदगी बिताओ  

सोमवार, 2 मई 2011

नया ज़माना

नया ज़माना 
पुराने दीवानों का प्रेम अब पुराना अफ़साना हो गया 
नए दीवानों का प्रेम अब नया फसाना हो गया 
वो हया से झुकी नजरें ,और लाल होते रुखसारों 
का अंदाज पुराना हो गया 
बेहयाई से गलबहियां डालकर घुमना 
अब नया ज़माना हो गया 
हाले दिल बयां करते प्रेम पत्रों को बहानों से भेजने 
का अंदाज पुराना हो गया 
इ-मेल ,और मोबाईल सन्देश से हाले दिल बयां करना 
अब नया ज़माना हो गया 
वो छुप-छुप के नजरें मिलाना ,दिल ही दिल मैं आहें भरने 
का अंदाज पुराना हो गया 
मोबाईल है सबके पास ,पल-पल होती प्यार की बात 
अब नया ज़माना हो गया 
बड़ों की इज्जत करना ,चुपचाप उनके आदेश का पालन करने
का अंदाज पुराना हो गया
बड़ों की बेइज्जती करना ,आँखों मैं आखें डालकर बहस करना
अब नया ज़माना हो गया 
भारतीय संस्कृति ,भारतीय सभ्यता को अपनाने 
का अंदाज पुराना हो गया 
पश्चिमी संस्कृति .पश्चिमी सभ्यता मैं रंगना 
अब नया जमाना हो गया 
काश कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन